करणी माता
● इनका जन्म 1387 ई. सुआप गाँव में हुआ।
● इनके पिता का नाम मेहाजी चारण तथा माता का नाम देवल बाई था।
● करणीमाता का विवाह देशनोक (बीकानेर) निवासी देपाजी बीठू के साथ हुआ ।
● करणी माता के छः बहिने थी। (छठी करणी माता, सातवीं गुलाब)
● करणीमाता 'चारणों की कुलदेवी' तथा 'बीकानेर के राठौड़ों की आराध्यदेवी' हैं।
● बीकानेर की नोखा तहसील के देशनोक गाँव में करणीमाता का मंदिर स्थित है।
● इनका बचपन का नाम रिद्धि बाई था।
● नवरात्र में देशनोक में करणीमाता का मेला लगता है। (वर्ष में दो बार)
● प्रिय भक्त दशरथ मेघवाल, सारंग विश्नोई थे।
● 1538 ई. में देशनोक बीकानेर में मृत्यु हुई।
● प्रमुख मंदिर- देशनोक बीकानेर, बाला का किला, अलवर।
● करणी माता 'दाढ़ी वाली ढोकरी' के नाम से भी प्रसिद्ध है।
● करणीमाता के मंदिर में सफेद चूहों को काबा कहा जाता हैं तथा करणी माता चूहों की देवी के रूप में प्रसिद्ध हैं।
● बीकानेर के राव बीका ने करणी माता की कृपा से राठौड़ वंश की स्थापना की।
● करणी माता ने 12 मई, 1459 को मेहरानगढ़ दुर्ग की नींव अपने हाथों से रखी।
● करणी माता का प्रारंभिक पूजा स्थल बीकानेर में नेहड़ी कहलाता है, जो जाल वृक्ष के नीचे स्थित है।
● करणी माता का एक रूप सफेद चील भी है।
● महाराजा गंगा सिंह ने करणी माता के मंदिर में चाँदी के किवाड़ चढ़वाये थे।
● करणी माता के मंदिर को मठ कहा जाता है।
● यहां पर सावन-भादों कड़ाही स्थित है।
● करणी माता का पेनोरमा देशनोक में स्थित है।
● करणी माता की स्तुति में रात्रि जागरण में गाया जाने वाला भक्ति गीत चिंरजा कहलाता है।
● इन्होंने लाखा चारण को अपने चमत्कार से जीवित किया।
● करणी माता के चार रूपों की पूजा की जाती है
● दाड़ी वाली डोकरी, अर्द्धनारीश्वर, विष्णुरूप, संभली (चील रूप)
तनोट माता (थार की वैष्णो देवी / रूमाल वाली देवी
● तनोट माता का मंदिर तनोट, जैसलमेर में स्थित है और यह मंदिर युद्ध देवी के मंदिर के नाम से भी विख्यात है।
● इस मंदिर का निर्माण 9वीं सदी में भाटी शासक तणुराव ने करवाया।
● भारतीय सैनिकों की आराध्य देवी है।
● इसे थार की वैष्णों देवी कहा जाता है।
● इनका मेला प्रतिवर्ष चैत्र और आश्विन माह के नवरात्र में लगता है।
● तनोट माता मंदिर के सामने भारत-पाक युद्ध 1965 ई. में भारत की विजय का प्रतीक 'विजय स्तम्भ' स्थापित है।जीण माता
● इनका जन्म घांघू गाँव, चुरू में हुआ।
● इनके बचपन का नाम जयन्ती/जैवण बाई था।
● इनके पिता का नाम घंघ था।
● इनके भाई का नाम हर्ष (भैरव का रूप) था।
● जीणमाता का मंदिर सीकर के रैवासा में आड़ावला की पहाड़ियों पर स्थित है।
● जीण माता को मधुमक्खियों की देवी कहा जाता है। (औरंगजेब के असफल आक्रमण का संबंध)
● जीण माता की अष्ठ भुज प्रतिमा के सामने घी एवं तेल के दो अखण्ड दीपक जलते रहते हैं।
● अन्य नाम जयंती देवी (पुराणों में), भ्रामरी देवी (भूरी की राणी)।
● हर्ष पर्वत पर स्थित शिलालेख के अनुसार जीण माता मंदिर का निर्माण पृथ्वीराज चौहान प्रथम के सामन्त हट्टड़ चौहान ने 1064 ई. में करवाया।
● जीण माता, सीकर के चौहान की कुलदेवी व सीकर के मीणा जनजाति की आराध्य देवी मानी जाती है।
● जीण माता, मंदिर के पास 'जोगी तालाब' स्थित है, जहाँ पर पाण्डवों की आदमकद प्रतिमा है।
● जीण माता का गीत, राजस्थान के लोक साहित्य में से सबसे लम्बा गीत है, जो 'कनफटे जोगी' गाते हैं। (करुण रस)
● ढाई प्याले शराब चढ़ाई जाती थी जिस पर अभी प्रतिबन्ध है।
● राजस्थान के भाई-बहिन की जोड़ी जो देवी-देवता के रूप में जाने जाते है।● इनके पिता का नाम बीका डाबी था।
● इनके बचपन का नाम जीजी बाई था।
● आई माता, सीरवी जाति के क्षत्रियों की कुलदेवी है।
● ये रामदेव जी की शिष्या रही।
● आई माता, 'नवदुर्गा का अवतार' मानी जाती है।
● आई पंथी, आई माता द्वारा बनाये गये 11 नियमों का पालन करते हैं।
● अतः इन्हें 11 डोरा पंथी कहते हैं।
● आई माता मंदिर में अखण्ड दीपक जलता है जिसकी जोत से केसर टपकता है।
● माता का थान (समाधि स्थल) बडेर कहलाता है मंदिर को दरगाह कहा जाता हैं।
शीतला माता
● शीतला माता का मुख्य मंदिर शील की डूंगरी, चाकसू (जयपुर ग्रामीण) में स्थित है। जिसे माधोसिंह द्वितीय ने बनवाया था।
● शीतला माता के मंदिर को सुहाग मंदिर के नाम से भी जाना जाता है।
● अन्य मंदिर- कागा, जोधपुर में स्थित है।
● प्रतीक चिह्न जलता हुआ दीपक / मिट्टी का बर्तन।
● शीतला माता को महामाई/बच्चों की संरक्षिका/सैडल माता / बास्योड़ा की देवी / चेचक निवारक माता आदि नामों से जाना जाता है।
● शीतला माता एकमात्र ऐसी देवी है, जिनकी खण्डित मूर्ति की पूजा होती है।
● इस माता का वाहन गधा होता है तथा कुम्हार जाति के लोग पुजारी होते हैं।
● खेजड़ी के वृक्ष को शीतला माता के रूप में भी पूजा जाता है।
● चैत्र कृष्ण अष्टमी को चाकसू (जयपुर) में शीतला माता का मेला भरता है।
● इस मेले को बैलगाड़ी मेले के नाम से जाना जाता है।
● सबसे प्राचीन मंदिर गोगुंदा, उदयपुर में स्थित है।
कैलादेवी
● करौली के यादव वंश/जादौन वंश की कुलदेवी है।
● कैला देवी का मंदिर करौली जिले में कालीसिल नदी के किनारे त्रिकूट पर्वत पर स्थित है।
● कैलादेवी की भक्ति में लांगुरिया गीत गाये जाते हैं। (घुटकण नृत्य, जोगणिया नृत्य)
● कैलादेवी का लक्खी मेला, चैत्र शुक्ल अष्टमी को त्रिकूट पहाड़ी पर भरता है।
● कैलादेवी 'गुर्जरों व मीणाओं की इष्ट देवी' है।
● कैलादेवी के मंदिर का निर्माण वर्ष 1900 में गोपालपाल ने करवाया।
● उपनाम- जोगमाया/अंजनी माता।
● कैला देवी मंदिर के सामने ही बोहरा भगत की छतरी है।
नागणेची माता
● मारवाड़ के राठौड़ वंश की कुलदेवी।
● बालोतरा का नगाणा गाँव नागणेची देवी का प्रथम धाम रहा।
● राजा धूहड़ के शासनकाल में लूम्ब नामक एक ब्राह्मण कन्नौज से राठौड़ों की कुल देवी चक्रेश्वरी देवी की एक मूर्ति लेकर मारवाड़ आया था, जिसे धूहड़ ने नगाणा गाँव में स्थापित किया जो की नागणेची के रूप में प्रसिद्ध हुई।
● इनको महिषासुरमर्दिनी कहा जाता है तथा इनका दूसरा रूप बाज/चील है।
● नीम के वृक्ष के नीचे मंदिर स्थित होता है। (18 हाथ + लकड़ी से निर्मित मूर्ति)
● प्रमुख मंदिर बालोतरा, नागौर, सिटी पैलेस उदयपुर, मेहरानगढ़, किशनगढ़, जूनागढ़।
सुगाली माता
● इनकी मूर्ति में में 10 सिर और 54 हाथ हैं।
● आउवा के चम्पावत ठाकुरों की कुलदेवी।
● 1857 की क्रांति की देवी।
सुगाली माता
● इनकी मूर्ति में में 10 सिर और 54 हाथ हैं।
● आउवा के चम्पावत ठाकुरों की कुलदेवी।
● 1857 की क्रांति की देवी।
शिला देवी
● मन्दिर- जलेब चौक, आमेर दुर्ग (जयपुर)
● जयपुर के शासकों (कच्छवाहा वंश) की आराध्य देवी।
● नवरात्रि में षष्ठी एवं अष्टमी पर मेले का आयोजन होता है।
● अष्टभुजी काले पत्थर की मूर्ति 16वीं सदी में मिर्जाराजा मानसिंह-प्रथम ने पूर्वी बंगाल के राजा केदार से युद्ध में जीतकर प्राप्त की।
● वर्तमान मंदिर का निर्माण मानसिंह द्वितीय ने करवाया।
कैवायमाता
● स्थान-किणसरिया गाँव, नागौर।
● किणसरिया गाँव का पुराना नाम सिणहाड़िया था।
● कैवायमाता के मन्दिर के सभामण्डप की बाहरी दीवार पर विक्रम संवत् 1056 (999 ई.) का एक शिलालेख उत्कीर्ण हैं।
● इस शिलालेख में चौहान शासकों वाक्पतिराज, सिंहराज और दुर्लभराज की प्रशंसा की गई है।
जमुवाय माता
● स्थान- जयपुर।
● ढूँढाड़ के कछवाहा वंश की कुल देवी।
● जमुवाय माता का पौराणिक नाम जामवंती है।
● कच्छवाह शासक दुल्हराय (तेजकरण) ने देवी माँ के आर्शीवाद से शत्रुओं पर विजय प्राप्त की और विजय प्राप्ति के बाद जमुवाय माता मन्दिर बनाया।
स्वांगियामाता
● ये जैसलमेर के भाटी राजवंश की कुलदेवी हैं।
● इस देवी को उत्तर की ढाल कहा जाता है।
● स्वांगिया का अर्थ- मुड़ा हुआ भाला
● जैसलमेर में तेमड़ा भाखर पर आवड़ माता का स्थान बना हुआ है, जिसके कारण इन्हें 'तेमड़ाताई' भी कहते हैं।
● जैसलमेर के भाटी राजवंश के राज्य चिह्न में सबसे ऊपर पालम चिड़िया (शगुन) तथा स्वांग (भाला) को मुड़ा हुआ देवी के हाथ में दिखाया गया है।
● सुगनचिड़ी को आवड़ माता का स्वरूप माना जाता है।
● इनके सात देवियों के सम्मिलित प्रतिमा स्वरूप को 'ठाला' कहा जाता हैं।
राणी सती
● स्थान - झुन्झुनूं।
● उपनाम - दादीजी।
● इनका नाम नारायणी बाई था।
● पति का नाम तनधन दास अग्रवाल।
● हिसार के नवाब के सैनिकों द्वारा अपने पति की हत्या के पश्चात् इन्होंने अपनी पति की चिता पर प्राणोत्सर्ग कर दिये, सती कहलायी। (माघ कृष्ण नवमी)
● मेला - भाद्रपद कृष्ण अमावस्या, लेकिन सती पूजन एवं सती महिमा मण्डन पर रोक लगा दी गयी है।
● भारत का सबसे बड़ा सती मंदिर है।
शाकम्भरी माता
● उदयपुरवाटी (नीम का थाना) के पास मलयकेतु पर्वत पर इस देवी का स्थान है। (लोहागर्ल तीर्थ)
● महिषासुर मर्दिनी की प्रतिमा स्थापित।
● अकाल पीड़ित लोगों को बचाने के लिए इन्होंने फल, सब्जियाँ, कन्दमूल उत्पन्न किए थे, इसी कारण यह देवी शाकम्भरी कहलायी।
● खण्डेलवालों की कुलदेवी।
● इनका एक मन्दिर सांभर में तथा दूसरा सहारनपुर में हैं।
सच्चियाय माता
● स्थान - ओसियाँ (जोधपुर ग्रामीण) ।
● इस मन्दिर का निर्माण आठवीं सदी में परमार राजकुमार उपलदेव ने करवाया।
● गुर्जर प्रतिहार ने महामारू शैली में इस मंदिर का निर्माण करवाया।
● इस मन्दिर में काले प्रस्तर की महिषासुर मर्दिनी की प्रतिमा स्थापित है।
● ओसवालों की कुलदेवी।
● साम्प्रदायिक सद्भाव की देवी।
पथवारी माता
● लोकदेवी के रूप में इनकी पूजा तीर्थयात्रा की सफलता की कामना हेतु की जाती है।
● पथवारी माता, गाँव के बाहर स्थापित की जाती है।
● इनके चित्रों में नीचे काला-गौरा भैंरू तथा ऊपर कावड़िया वीर एवं गंगोज का कलश बनाया जाता है।
कालिका माता
● यह प्राचीन मंदिर चितौड़ दुर्ग के भीतर पद्मनी के महलों के विशाल गुंबद के रूप में है, जिसमें स्थान-स्थान पर सूर्य की मूर्तियाँ विद्यमान है।
● यह गहलोत वंश की कुल देवी है।
शाकंभरी माता
● सांभर, जयपुर।
● चौहान वंश की कुलदेवी के रूप में प्रसिद्ध है।
● सांभर झील, जयपुर में इनका मंदिर स्थित है।
● इनका मेला प्रतिवर्ष भाद्रपद शुक्ल अष्टमी को लगता है।
त्रिपुर सुंदरी माता
● यह मंदिर तलावड़ा- बाँसवाड़ा में स्थित है।
● इस मंदिर में माता की काले पत्थर की अष्टादश भुजा वाली भव्य प्रतिमा प्रतिष्ठित है।
● यह अपने भक्त जनों द्वारा 'तुरताई माता' के नाम से भी संबोधित की जाती है।
● यह पांचाल जाति की कुल देवी हैं।
नारायणी देवी
● जन्म- मोरागढ़, जयपुर
● पिता- विजयराम नाई
● माता- रामवती
● बचपन का नाम करमेती बाई
● अलवर में राजगढ़ तहसील की बरवा डूंगरी पर मुख्य मंदिर स्थित है।
● नारायणी देवी का संबंध नाई जाति से था
● ये अपने पति के साथ सती हुई थी।
● इन्हें नाई जाति की कुलदेवी के रूप में पूजा जाता है।
● मीणा जनजाति द्वारा भी इनकी उपासना की जाती है।
● वैशाख शुक्ल एकादशी को मेला भरता है।
सुंधा माता
● सुंधा माता का मंदिर जसवन्तपुरा की पहाड़ियों (भीनमाल, जालौर) में है।
● सुंधा पहाड़ी पर स्थित होने के कारण सुंधा माता के नाम से जाना जाता है।
● धड़रहित प्रतिमा की पूजा की जाती है।
● 2006 में राजस्थान का प्रथम रोपवे यही बना।
● यहाँ भालू अभयारण्य स्थित है।
बडली माता
● आकोला (चित्तौड़गढ़) में मुख्य मंदिर स्थित है।
● छोटे बच्चों का इलाज यहाँ पर किया जाता है।
अम्बिका माता
● उदयपुर में मुख्य मंदिर स्थित है।
● इस मंदिर को 'मेवाड़ के खजुराहो' के नाम से जाना जाता है। चन्देल शासकों द्वारा निर्मित खजुराहो के मंदिर मध्य प्रदेश में स्थित है।
प्रमुख राजवंशों की कुलदेवियाँ
माता | जिला | राजवंश |
जमुवाय माता | जयपुर | कच्छवाहा राजवंश की कुलदेवी |
शाकम्भरी माता | साँभर | शाकंभरी के चौहानों की कुल देवी |
अंजना/कैलामाता | करौली | यादव राजवंश की कुल देवी |
राजेश्वरी माता | भरतपुर | भरतपुर जाट वंश की कुल देवी |
नागणेची माता | जोधपुर | सम्पूर्ण राठौड़ों की कुल देवी |
स्वांगिया माता | जैसलमेर | भाटी राजवंश की कुल देवी |
चामुंडा माता | मंडोर(जोधपुर) | गुर्जर प्रतिहार राजवंश की कुल देवी |
ज्वाला माता | जोबनेर | खंगारोतों की कुल देवी |
शिला माता | जयपुर | कच्छवाहा राजवंश की आराध्य देवी |
करणी माता | बीकानेर | बीकानेर के राठौड़ों की आराध्य देवी |
जीण माता | सीकर | चौहानों की आराध्य देवी |
आशापुरा माता | जालौर | जालौर के सोनगरा चौहानों की आराध्य देवी |
बाण माता | उदयपुर | गुहिल वंश की कुलदेवी |
भदाणा माता | कोटा | हाड़ा चौहानों की कुलदेवी |
नकटी माता | ● मंदिर - जय भवानीपुरा (जयपुर) |
दधीमती माता | ● मुख्य मंदिर, गोठ, मांगलोद (नागौर) में स्थित है। |
भंवाल माता | ● भंवाल, मेड़ता (नागौर) में मुख्य मंदिर स्थित है। |
मरकण्डी माता | ● निमाज (पाली) में मुख्य मंदिर स्थित है। |
ज्वाला माता | ● जोबनेर (जयपुर) में मुख्य मंदिर स्थित है। |
छींक माता | ● जयपुर में मुख्य मंदिर स्थित है। |
क्षेमकरी माता | ● भीनमाल (जालौर) में मुख्य मंदिर स्थित है। |
हर्षद माता | ● आभानेरी (दौसा) में मुख्य मंदिर स्थित है। |
आवरी माता | ● निकुम्भ (चित्तौड़गढ़) में मुख्य मंदिर स्थित है। |
बाण माता | ● मेवाड़ के सिसोदिया वंश की कुलदेवी। |
अंबिका माता | ● मंदिर - उदयपुर |
राजेश्वरी माता | ● भरतपुर में मुख्य मंदिर स्थित है। ● भरतपुर के जाट राजवंश की कुल देवी है। |
घेवर माता | ● राजसमंद में मुख्य मंदिर स्थित है। |
जिलाड़ी माता | ● कोटपूतली- बहरोड़ में मुख्य मंदिर स्थित है। |
भदाणा माता | ● कोटा के भदाणा नामक स्थान पर मुख्य मंदिर स्थित है। |
महामाया | ● इसका मुख्य मंदिर मावली उदयपुर में। |
ब्राह्मणी माता | ● मंदिर - सोरसन ग्राम (बारां) |
लटियाली माता | ● फलौदी (जोधपुर) में मुख्य मंदिर स्थित है। |
सारिका माता | ● उपनाम - उष्ट्रवाहिनी देवी। |
अर्बुदा माता | ● माउंट आबू (सिरोही) ● राजस्थान की वैष्णों देवी कहा जाता है ● एक मात्र देवी जिसके होंठो की पूजा होती है। (अधर देवी) |
भ्रमर माता / भंवर माता | ● छोटी सादड़ी, प्रतापगढ़ |
छींछ माता | ● बाँसवाड़ा |
फूलां माता | ● डूंगरपुर [डामोर जाति की कुल देवी] |
हींगलाज माता | ● लोद्रवा (जैसलमेर) ● चर्म रोगों की देवी |
आवड़ माता | ● धौरीमन्ना (बाड़मेर) ● माण्डधरा / जैसलमेर की देवी कहते है |
तेमड़ामाई माता | ● भू गांव (तेमड़ा माखर पर्वत पर) जैसलमेर ● द्वितीय हिंगलाज माता कहा जाता है ● मेला भाद्रपद शुक्ल छष्ठी को भरता है। |
आशापुरा माता | ● नाडौल (पाली) ● यह आशापुरा माता का मुख्य मंदिर है ● 1038 ई. में लक्ष्मणसिंह / लाखनसी ने मंदिर का निर्माण कराया |
आशापुरा माता | ● पोकरण (जैसलमेर) ● बिस्सा जाति की कुल देवी ● बिस्सा जाति के दुल्हा-दुल्हन अपने हाथ पैरों में मेंहदी लगाकर मंदिर में प्रवेश नहीं करते है। |
आशापुरा माता/महोदरा माता | ● मोदरा गाँव (जालौर) ● मोदरां माता या बड़े पेट वाली देवी कहते है। ● जालौर के सोनगरा चाहौनों की कुल देवी है। |
वीरातरा/विरात्रा माता | ● चौहटन (बाड़मेर) |
वांकल माता | ● चौहटन (बाड़मेर) ● रेबारी जाति की कुल देवी |
रूपा दे माता | ● तिलवाड़ा (बालोतरा) ● लोक देवता मल्लीनाथ जी की पत्नी थी। ● पश्चिमी राजस्थान में बरसात वाली देवी कहते है। |
आमजा माता | ● रिच्छेड़ (कुम्भलगढ़) ● यह भीलों की कुल देवी है ● ज्येष्ठ शुक्ल अष्टमी को मेला भरता है |
नीमच माता | ● उदयपुर ● मेवाड़ की वैष्णों देवी |
मंशापूर्ण करणी माता | ● उदयपुर ● राजस्थान का दूसरा रोपवे |
ईडाणा माता | ● बम्बोरा (सलूम्बर) ● राजस्थान की एक मात्र देवी जो अग्नि स्नान करती है। |
हिचकी माता | ● सनवाड़, उदयपुर |
जोगणिया माता | ● बेंगू (चित्तौडगढ़) ● कंजर जाति की कुल देवी |
कोड़िया माता | ● शाहबाद बारां ● सहरिया जाति की कुल देवी |
नकटी माता | ● मंदिर - जय भवानीपुरा (जयपुर) |
दधीमती माता | ● मुख्य मंदिर, गोठ, मांगलोद (नागौर) में स्थित है। |
भंवाल माता | ● भंवाल, मेड़ता (नागौर) में मुख्य मंदिर स्थित है। |
मरकण्डी माता | ● निमाज (पाली) में मुख्य मंदिर स्थित है। |
ज्वाला माता | ● जोबनेर (जयपुर) में मुख्य मंदिर स्थित है। |
छींक माता | ● जयपुर में मुख्य मंदिर स्थित है। |
क्षेमकरी माता | ● भीनमाल (जालौर) में मुख्य मंदिर स्थित है। |
हर्षद माता | ● आभानेरी (दौसा) में मुख्य मंदिर स्थित है। |
आवरी माता | ● निकुम्भ (चित्तौड़गढ़) में मुख्य मंदिर स्थित है। |
बाण माता | ● मेवाड़ के सिसोदिया वंश की कुलदेवी। |
अंबिका माता | ● मंदिर - उदयपुर |
राजेश्वरी माता | ● भरतपुर में मुख्य मंदिर स्थित है। ● भरतपुर के जाट राजवंश की कुल देवी है। |
घेवर माता | ● राजसमंद में मुख्य मंदिर स्थित है। |
जिलाड़ी माता | ● कोटपूतली- बहरोड़ में मुख्य मंदिर स्थित है। |
भदाणा माता | ● कोटा के भदाणा नामक स्थान पर मुख्य मंदिर स्थित है। |
महामाया | ● इसका मुख्य मंदिर मावली उदयपुर में। |
ब्राह्मणी माता | ● मंदिर - सोरसन ग्राम (बारां) |
लटियाली माता | ● फलौदी (जोधपुर) में मुख्य मंदिर स्थित है। |
सारिका माता | ● उपनाम - उष्ट्रवाहिनी देवी। |
अर्बुदा माता | ● माउंट आबू (सिरोही) ● राजस्थान की वैष्णों देवी कहा जाता है ● एक मात्र देवी जिसके होंठो की पूजा होती है। (अधर देवी) |
भ्रमर माता / भंवर माता | ● छोटी सादड़ी, प्रतापगढ़ |
छींछ माता | ● बाँसवाड़ा |
फूलां माता | ● डूंगरपुर [डामोर जाति की कुल देवी] |
हींगलाज माता | ● लोद्रवा (जैसलमेर) ● चर्म रोगों की देवी |
आवड़ माता | ● धौरीमन्ना (बाड़मेर) ● माण्डधरा / जैसलमेर की देवी कहते है |
तेमड़ामाई माता | ● भू गांव (तेमड़ा माखर पर्वत पर) जैसलमेर ● द्वितीय हिंगलाज माता कहा जाता है ● मेला भाद्रपद शुक्ल छष्ठी को भरता है। |
आशापुरा माता | ● नाडौल (पाली) ● यह आशापुरा माता का मुख्य मंदिर है ● 1038 ई. में लक्ष्मणसिंह / लाखनसी ने मंदिर का निर्माण कराया |
आशापुरा माता | ● पोकरण (जैसलमेर) ● बिस्सा जाति की कुल देवी ● बिस्सा जाति के दुल्हा-दुल्हन अपने हाथ पैरों में मेंहदी लगाकर मंदिर में प्रवेश नहीं करते है। |
आशापुरा माता/महोदरा माता | ● मोदरा गाँव (जालौर) ● मोदरां माता या बड़े पेट वाली देवी कहते है। ● जालौर के सोनगरा चाहौनों की कुल देवी है। |
वीरातरा/विरात्रा माता | ● चौहटन (बाड़मेर) |
वांकल माता | ● चौहटन (बाड़मेर) ● रेबारी जाति की कुल देवी |
रूपा दे माता | ● तिलवाड़ा (बालोतरा) ● लोक देवता मल्लीनाथ जी की पत्नी थी। ● पश्चिमी राजस्थान में बरसात वाली देवी कहते है। |
आमजा माता | ● रिच्छेड़ (कुम्भलगढ़) ● यह भीलों की कुल देवी है ● ज्येष्ठ शुक्ल अष्टमी को मेला भरता है |
नीमच माता | ● उदयपुर ● मेवाड़ की वैष्णों देवी |
मंशापूर्ण करणी माता | ● उदयपुर ● राजस्थान का दूसरा रोपवे |
ईडाणा माता | ● बम्बोरा (सलूम्बर) ● राजस्थान की एक मात्र देवी जो अग्नि स्नान करती है। |
हिचकी माता | ● सनवाड़, उदयपुर |
जोगणिया माता | ● बेंगू (चित्तौडगढ़) ● कंजर जाति की कुल देवी |
कोड़िया माता | ● शाहबाद बारां ● सहरिया जाति की कुल देवी |
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